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प्रेरणादायक कहानियां

धन-खर्चीले ने धिनु की बड़ी ही आव-भगत की, तथा उसे पेट भर कर भोजन करवाया | उसे पहनने को वस्त्र दिए | तथा उसे आराम से लेटा कर वह सोने चला गया |

रात को सपने में जुलाहे को फिर से भाग्य तथा कर्म नजर आए | भाग्य कर्म से बोला – ” भाई कर्म ! इस धन-खर्चीले ने तो जुलाहे की बड़ी आव-भगत की, तथा इसे पेट भर कर भोजन कराया | वस्त्र पहनने को दिए, इसमें इसने अपनी रही सही पूंजी भी खर्च कर दी | अब कल उसका खाने पीने का क्या होगा |”

कर्म बोला – ” अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देना ही मेरा काम है | अब कल क्या होगा, यह तुम्हारे हाथ है | भाग्य का चमत्कार दिखाओ |

अगले दिन सुबह-सुबह राजदरबार का एक कर्मचारी धन-खर्चीले के घर आया और राजा की ओर से रुपयों की एक थैली भेंट कर गया | उसने अकाल पीड़ितों की बहुत सेवा की थी | यह देखकर जुलाहा सोचने लगा कि – ” धन-जोडू के जैसा करोड़पति बनने से धन-खर्चीले के जैसा परोपकार करना और मस्त रहना लाख दर्जे अच्छा है, क्योंकि धन की सार्थकता उसके सदवय में होती है | जिस धनी का धन किसी के काम ना आवे उससे तो निर्धन रहना अच्छा है | धर्म को आचरण करने से ही मनुष्य धर्मात्मा कहलाता है | केवल धर्माप्देश पढ़ लेने मात्र से कोई धर्मात्मा नहीं बन जाता |”

यह विचार करके जुलाहा बोला – ” हे भाग्य देवता ! आप मुझे धन-खर्चीले सदृश धनी बना देते तो अच्छा है | मुझे धन-जोडू के जीवन में कुछ सार्थकता नहीं प्रतीत होती |”

धिनु की मर्जी से भाग्य ने उसे धन-खर्चीले के जैसा बना दिया | जब वह गांव लौट कर आया तो, यहां उसका धंधा खूब चमकने लगा | साथ ही वह जितना कमाता उतना ही परोपकार में उड़ा भी देता था | इस कारण उसने धन तो नहीं बटोरा किंतु यश खूब बटोरा | इसी से धिनु तथा उसकी पत्नी संतुष्ट है |

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